जीवन एक प्रकार से प्रश्न ही है जिसका उत्तर खोजने के लिए हमने पृथ्वी पर जन्म लिया है,और इसी एक प्रश्न को समझने के लिए हम अपनी ज़िन्दगी जीते हैं और कभी कभी तो इस प्रश्न से टकराते हैं,कभी इसका ग़लत उत्तर ढूंढ़ लेते हैं तो कभी उत्तर के बिल्कुल समीप पहुंचकर भी हम उत्तर पाने से पहले ही इस जीवन रूपी प्रश्न के आगोश से ही दूर चले जाते हैं।
अब इस प्रश्न को ढूंढने के कई रास्ते हैं,जो हमें स्वयं ही चुनने पड़ते हैं,इसी सापेक्ष में अभी हाल में दिवंगत हुए शायर, डॉ राहत इंदौरी साहब ने एक शेर लिखा है :
आंखों में पानी रखो, होठों पे चिंगारी रखो,
ज़िंदा रहना है तो तरकीबें बहुत सारी रखो।
ज़िंदा रहने का तात्पर्य अगर हम प्रश्न ढूंढने से निकालें तो इस शेर से ये बात साफ निकल कर आ रही है, कि हमें जीवन रूपी प्रश्न का उत्तर ढूंढने के दरम्यान बहुत सी तरकीबों रखनी चाहिए,क्या पता कौन सी तरकीब ,हमें हमारे उत्तर तक पहुंचा दे।
लेकिन अगर वर्तमान हम देखें तो ये पाएंगे कि बहुत से लोग एक ही रास्ते पर बेमन चलते हुए जीवन बीता देते हैं और रास्ते बदलने की कोशिश भी नहीं करते ,ऐसे में वो जीवन रूपी प्रश्न ही समझ नहीं पाते,उत्तर की तो बात ही और है,जिसकी वजह से जीवन ही उनके लिए बोझिल हो जाता है और इस बेहतरीन चुनौती को स्वीकार करने के बजाय वो हार मान जाते हैं।
तो प्रश्न को समझने में अपना समय लें और उत्तर प्राप्त कर इस जीवन की सार्थकता को सिद्ध करें।
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