नाथ संभुधनु भंजनिहारा।
होईही केउ एक दास तुम्हारा।।
राजा जनक का सभागार समूचा अचंभित था,आश्चर्य सबके आंखों के सामने झलक रही थी कि इतना कोमल बालक इतने विशाल शिव धनुष को जिसे इतने महान और बलशाली राजा उठा तक नहीं पाए, इतनी आसानी से कैसे तोड़ सकता है,हालांकि माता सीता के आंखों की चमक अपने स्मरणीय पति को उनमें ही खोज चुकी थीं और मन ही मन मुस्कुरा रही थीं।
इतने में घनघोर गर्जना के साथ,शिव के अनन्य भक्त परशुराम सभा में आते हैं और गुस्से के गुब्बारे को फेंकते हुए ,पूछते हैं कि किसने शिव धनुष तोड़ा,इसपर लक्ष्मण की तीखी टिप्पणी का प्रभाव युद्ध की ओर लेे जाने लगा, और परशुराम के क्रोध की सीमा इतनी बढ़ गई कि युद्ध के लिए दोनों पक्ष तैयार हो गए,इस बीच राम अपनी संयम ,धैर्य और विनम्रता का परिचय देते हुए परशुराम को अपने विषय में अवगत करा ही देते हैं तो इस तरह क्रोध पर पुनः विनम्रता धैर्य की जीत हो जाती है।
इसलिए आप भी अपने जीवन में विनम्रता का समावेश करें,इससे आप जीवन की कई कठिनाइयों से बच सकते हैं और किसी की तीखी वाणी को भी मीठी वाणी में तब्दील कर सकते हैं।
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