हमारा देश तमाम रीति रिवाज़ से जुड़ा हुआ देश है जिसके संस्कार को परदेश में भी लोग याद रखते हैं,हालांकि अब धीरे धीरे इन रीति रिवाज़ को बंधनों में बांधा जा रहा है और एक अलग सी भ्रांति पैर पसार रही है और इसे एक अलग तरह से जोड़ा जा रहा है,कई बार तो ऐसा भी हो रहा है कि किसी भी समस्या के समाधान के लिए किसी विशेष पत्थर जिसे हम आमतौर से रत्न कहते हैं को काफी अधिक महत्वपूर्ण बताया जा रहा है,हालांकि ये सोचने वाली बात है कि कर्म की प्रधानता को हम गीता में पढ़ने के बाद भी कैसे इस पर विश्वास कर लेते हैं,आइए आज इसी संबंध में थोड़ा विस्तृत तौर पर बात की जाए।
रत्न की कालाबाजारी से शायद आप अनभिज्ञ होंगे इसलिए कुछ बातें जिसपर गौर करना ज़रूरी है:
१. रत्न को जीवन में विशेष स्थान दिलवाया जा रहा है,दूसरी तरह से कहूं तो वास्तव में भयपूर्ण लोगों के बीच भय के माहौल को और भी तीव्र करके उनसे रत्न खरीदवाया जा रहा है।
२.एक ज्योतिषी और एक रत्न बेचने वाले में एक डील होती है जिसके तहत रत्न का कुछ प्रतिशत हिस्सा ज्योतिषी को मिलता है और बाकी का हिस्सा दुकानदार रखता है।
अंत में वैसा ही होता भी है जैसा एक लोभी ज्योतिषी और चालाक दुकानदार चाहता है,एक भयपूर्ण व्यक्ति आखिरकार उस चंगुल मै फंस जाता है और लाखों रुपए रत्न में गंवा देता है,हालांकि वो ये समझ नहीं पाता कि असल में वो उसका आत्मविश्वास ही होता है जो उसे समस्याओं से निजात दिलवा पाता है।
इसलिए आप जागरूक बनिए और कर्म प्रधान देश में इस तरह की भ्रांति को फैलने से रोकिए और देश की प्रगति में अपना योगदान दीजिए।
याद रखिए वो लोग ज्यादा सफल है जिन्होंने गरीबी देखी है,संघर्ष किया है, और एक गरीब के पास खाने की रोटी के जुगाड और परिवार की ज़रूरी आवश्यकता के बाद इतना पैसा नहीं बचता की वो रत्न में खर्च कर सके।
जागो ग्राहक जागो!
धन्यवाद्
किसी भी वास्तु,ज्योतिष संबंधी जानकारी के लिए हमसे संपर्क करें(हम किसी भी प्रकार के रत्न का नहीं सुझाव देते हैं और नाही इसे बढ़ावा देते हैं)
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