ऐसा कहा जाता है कि विपरीत परिस्थितियों में इंसान अपनी शक्तियों के बारे में और जान पाता है,वो शक्तियां जिनसे वो अबतक अनभिज्ञ रहा है,वो शक्तियां तब तक सुप्त अवस्था में रहती है जब तक इंसान अपने कंफर्ट में होता है,या हम ये भी कह सकते हैं कि वो शक्तियां एक निश्चित दिशा में नहीं चलती हैं,हालांकि इस छोटी से चर्चा में ये तो तय हुआ कि हमारे शरीर में अदृश्य और बेहद शक्तिशाली शक्तियां विद्यमान है,जो समय आने पर कुछ देर के लिए हमें सहायता प्रदान करती हैं,हालांकि अब ये भी विषय उठता है कि क्या इन शक्तियों को हम हमेशा के लिए जागृत नहीं कर सकते?
जवाब है हां, और इसी शक्ति को जागृत करने का नाम है कुण्डलिनी जागरण,ये एक विशेष प्रकार की शारीरिक और आत्मिक क्रिया है जिसकी मदद से शरीर में एक सूक्ष्म क्रिया का अनुभव होता है ,हालांकि इस जागरण के पश्चात इंसान का इस मोहव्यापी संसार से मन उठ जाता है या स्पष्ट तौर पर कहें तो मोह भंग हो जाता है।
अब,चर्चा करते हैं कि कुण्डलिनी जागरण को किया कैसे जाए,हालांकि मोटे तौर पर कहें तो कुण्डलिनी जागरण कठिन ध्यान और साधना का प्रसाद है,इसकी विधि इस प्रकार है:
– कुण्डलिनी के लिए योग का सबसे अच्छा समय भोर का वक़्त होता है,इसलिए इसका योग भोर से ही करना शुरू करें।
– दिमाग़ को स्थिर करके दोनों भौहों के बीच में ध्यान लगाना शुरू करिए।
-कुण्डलिनी का निवास मूलाधार चक्र में सुप्त अवस्था में होता है।
-और अत्यधिक ध्यान लगाने के कारण ही ये धीरे धीरे ऊपर चढ़ता हुआ मनुष्य को वैराग्य कर देता है।
-फिर मनुष्य अपनी मनुष्यता खो देता है और उसमें वो शक्तियां जागृत हो जाती हैं जो आम इंसान में नहीं होती।
हालांकि इस विषय में अहम बात ये भी है कि कुण्डलिनी जागरण एक नास्तिक प्रणाली है,क्योंकि इसमें इंसान में ‘अहम ‘ की भावना व्यापक हो जाती है।
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