जिस प्रकार आज बच्चों और उनके मां बाप में तकरार हो जा रही है, जो खासतौर पर वैचारिक मतभेद की वजह से ही होती है,क्योंकि बच्चा हमेशा ही अपने मां बाप से एक पीढ़ी आगे है तो उसकी सोच और हमारी सोच में अंतर तो रहेगा ही,लेकिन ये अंतर हमारे और बच्चों के बीच दूरियां ना पैदा करे,कम्युनिकेशन गैप ना ला दे, इस वजह से ही इस पत्र को मै सार्वजनिक तौर पर साझा करना चाहता हूं।
बेटा , मै बहुत खुश हूं कि तुमने इतनी अच्छी शिक्षा ग्रहण की और हमारे घर परिवार का नाम रौशन किया,इससे बड़ी बात भला एक बाप के लिए क्या ही हो सकती है,उसका बेटा नित्य नए कीर्तिमान रचे,ये हर बाप की ख्वाहिश होती है,ये सभी खुशियों का मर्म शायद तुम तब समझ पाओगे जब तुम बाप बनोगे।
लेकिन बेटा ,जिस तरह से तुम्हारे बात का तरीका बदल गया है,जिस तरह तुम अपने दोस्तों को हमसे अधिक वरीयता देने लगे हो,जिस तरह से हर दूसरी बात पर हमारी बहस हो जाती है,उससे कहीं ना कहीं मेरा अंतस रो जाता है।
मानता हूं कि मेरे ख़्याल पुराने हैं,मानता हूं कि मै कभी कभी कड़वा बोल देता हूं,ये भी मानता हूं कि मेरी दी हुई राय तुम्हारे पैमानों पर खरा ना उतरती हो,लेकिन मैं तुम्हारा बुरा कभी नहीं सोचता बेटे,इसलिए मुझसे नाराज़ होकर बात करना बंद मत किया करो,मेरी तुमसे मात्र इतनी सी आकांक्षा है कि बस तुम खुश रहो और हमसे बात करते रहो, और इन सभी बातों का मर्म तुम तब समझ पाओगे बेटा जब तुम एक बाप बनोगे।
आज कल के बच्चे सुनना या रोक टोक पसंद नहीं करते, परन्तु वो ये समझ नहीं पाते के ये उनकी भलाई के लिए है। चलो माना के स्पेस या फ्रीडम देना ज़रूरी है क्योंकि वो बच्चे अब बच्चे नहीं रहे, परंतु अपने माँ बाप को भी थोड़ा वक्त तो दो आप एडजस्ट करने का, उन्होंने हमेशा अपने बच्चों को ऐसे ही पाला है। तो थोड़ा वक्त तो लगेगा उनको समझने में और ख़ुद को समझाने में।
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